महात्मा फुले की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में महाराष्ट्र प्रदेश एनएसयूआई की ओर से शेतकी कॉलेज स्थित महात्मा फुले की प्रतिमा पर पुष्पांजलि और अभिवादन कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसी कार्यक्रम में तिवारी ने आपले विचार व्यक्त किए।
उन्होंने आगे कहा कि
छत्रपति शिवाजी महाराज, संत परंपरा, समाजसुधारक छत्रपति शाहू महाराज, महात्मा फुले, गोपाल कृष्ण गोखले, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर और आगरकर यांच्या पुरोगामी महाराष्ट्रात शिक्षण का स्तर और साक्षरता भले ही बढ़ी हो, लेकिन संवैधानिक लोकशाही मूल्यों के प्रति बढ़ती उदासीनता राज्य को खतरनाक रास्ते पर ढकले रही है — यह आज की वास्तविकता है।
स्वतंत्रता-पूर्व ब्रिटिश काल में जब समाज में जातीय विभाजन चरम पर था, तब शैक्षणिक क्रांति की ज्योत जलाने वाले महात्मा फुले दंपत्ति के योगदान को महाराष्ट्र कभी भूल नहीं सकता। स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रनिर्माण के मार्ग को दिशा देणाऱ्या महाराष्ट्र की जनता में शैक्षणिक समझ और सुशिक्षितता दृढ़ होनी ही चाहिए। संवैधानिक जागरूकता और सुशिक्षितता को सिद्ध करके ही महाराष्ट्र, फुले दंपत्ति की शैक्षणिक क्रांति के ऋण से मुक्त हो सकेगा, ऐसा वक्तव्य तिवारी ने इस अवसर पर किया।
महाराष्ट्र एनएसयूआई के उपाध्यक्ष अक्षय कांबळे ने कहा,
“महात्मा फुले कहा करते थे—‘विद्या बिना मति जाती है।’ शिक्षा के बिना मनुष्य प्रगति नहीं कर सकता और न ही जाति-भेद, लिंग-भेद को पराजित कर सकता है। आज भी फुले के विचार हमें संदेश देते हैं—ज्ञान प्राप्त करो, समानता के लिए संघर्ष करो और समाज परिवर्तन की दिशा में कदम बढ़ाओ।”
अभिजीत गोरे ने कहा,
“महात्मा फुले के विचार आज भी हमारे जीवन के लिए मार्गदर्शक दीपस्तंभ हैं। उनकी पुण्यतिथि पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम फुले की शिक्षाओं का अनुसरण करेंगे, भेदभाव मिटाने का प्रयास करेंगे और समाज परिवर्तन के लिए आगे आएँगे।”
कार्यक्रम में जिलाध्यक्ष सिद्धांत जांभुळकर, कृष्णा साठे, रविराज कांबळे, विकास अवचार, संदीप गायकवाड, अविनाश राठोड, ओम भवर आदि उपस्थित थे।