गोपालदादा तिवारी ने कहा कि शहीद प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के संदर्भ में उनके कार्यकाल की तुलना मोदी जी के कार्यकाल से करना न सिर्फ बौद्धिक दिवालियापन है, बल्कि यह राजनीतिक विकृति और असंवेदनशीलता का प्रदर्शन भी है।
उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी की दूरदर्शी नीतियाँ, राजनैतिक निर्णय क्षमता और वैश्विक कूटनीतिक दृष्टिकोण का कोई मुकाबला मोदी सरकार के कार्यों से नहीं किया जा सकता। कई माध्यमों ने ऐसी तुलना करने की कोशिश जरूर की, लेकिन जब बात नीतियों, फैसलों और देश के लिए किए गए कार्यों की आई, तो मोदी कहीं भी इंदिरा जी से ऊपर साबित नहीं हो सके।
गोपालदादा तिवारी ने आरोप लगाया कि भाजपा इस बात का ढोल पीट रही है कि प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यकाल के दिनों की संख्या में इंदिरा गांधी को पीछे छोड़ दिया है। लेकिन किसी प्रधानमंत्री के कार्यकाल की तुलना इस तरह "दिन गिनकर" करना और उसमें गर्व महसूस करना, एक प्रकार की बौद्धिक दिवालियापन की पराकाष्ठा है।
उन्होंने कहा कि जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी, तब वे देश की वर्तमान प्रधानमंत्री थीं। अगर दुर्भाग्यवश उनकी हत्या न हुई होती, तो वे निश्चित रूप से पंडित नेहरू के 17 वर्षों के कार्यकाल का रिकॉर्ड तोड़तीं और भारत को उसी समय एक वैश्विक महाशक्ति बना देतीं – यह भी एक ऐतिहासिक और राजनीतिक सच्चाई है।
उन्होंने इंदिरा गांधी के योगदान को याद करते हुए कहा कि देश की कृषि, विज्ञान-प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष और सैटेलाइट के क्षेत्र में जो अभूतपूर्व प्रगति हुई, उसका श्रेय उन्हीं की नीतियों को जाता है। प्रधानमंत्री मोदी आज जिस 'मन की बात' कार्यक्रम के माध्यम से जनता से संवाद करते हैं, उसकी नींव भी इंदिरा गांधी के समय में ही दूरदर्शन और आकाशवाणी जैसे माध्यमों की मजबूती से रखी गई थी।
आखिर में तिवारी ने कहा कि जब इंदिरा गांधी और राजीव गांधी शहीद हुए, तब वे केवल व्यक्ति नहीं, बल्कि राष्ट्र के वर्तमान प्रधानमंत्री थे। उस समय पूरा देश शोक में डूब गया था। ऐसे में उनके कार्यकाल के "दिन" गिनना और तुलना करना न केवल असंवेदनशील है, बल्कि एक अमानवीय और अनैतिक कृत्य भी है।
"विशेष रूप से श्रीमती इंदिरा गांधी की 'प्रधानमंत्री पद की कार्यकाल' देश की प्रगति सुनिश्चित करने और देश के भीतर की समस्याएं सुलझाने में अधिक खर्च हुई, न कि लगातार विदेश दौरों में..." — ऐसा भी उन्होंने विशेष रूप से जोड़कर कहा।