लॉक डाउन में भी मस्जिदों से अजान, यूपी के ग्रामीण अंचलों में बदस्तूर जारी है नमाज प्रथा

  सुल्तानपुर, भगीरथ प्रयास न्यूज़ नेटवर्क ब्यूरो रिपोर्ट : 


 


उत्तर प्रदेश सहित देश भर में कोरोना के कहर को देखते हुए पिछले 39 दिनों से लॉक डाउन चल रहा है. देशव्यापी लॉक डॉन के तहत शहरों और बाजारों को तो पूरी तरह बंद करवाया ही गया है मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा चर्चों आदि पर भी ताला लगवा दिया गया है. यहां तक कि देश के सुविख्यात मंदिरों और नामचीन मस्जिदों में भी ताला लग गया है, बावजूद इसके उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां कोरोना संक्रमण फैलने से बेखौफ होकर ग्रामीण अंचलों में आज भी मस्जिदों से प्रतिदिन नमाज के लिए अजान की जाती है. 


 


 भगीरथ प्रयास न्यूज़ नेटवर्क के सुल्तानपुर ब्यूरो के अनुसार यहां के बल्दीराय, मुसाफिरखाना और सदर तहसील अंतर्गत अनेक मुस्लिम बहुल गांवों में प्रतिदिन मस्जिदों से अजान की आवाज सुनने को मिलती है. 


 


 इसे सामाजिक सद्भाव ही कहा जाएगा कि मंदिरों में लाउड स्पीकर बजाने की अनुमति नहीं है और मस्जिदों में लाउडस्पीकर लगाकर अजान होता है फिर भी दूसरे धर्म के लोग इस पर एतराज नहीं करते हैं. यह अनूठा उदाहरण उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में ही देखने को मिल सकता है. जबकि अन्य राज्यों खासकर महाराष्ट्र जैसे राज्यों के मुंबई पुणे जैसे बड़े शहरों में आज मस्जिदों से अजान की आवाज नहीं सुनाई देती है . 


 


भगीरथ प्रयास के पुणे ब्यूरो के अनुसार पुणे के कुछ इलाकों में रमजान के पहले दिन स्लम एरिया में स्थित कुछ मस्जिदों में अजान की आवाज सुनाई पड़ी थी जिसके लिए स्थानीय पुलिस वहां तुरंत पहुंची और तुरंत ही मस्जिद के प्रबंधकों को सख्त ताकीद दी गई कि यदि दुबारा यहां अजान होती है तो उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी. इसके बाद अब पुणे के किसी भी मस्जिद से रमजान के महीने में भी अजान नहीं हो रहा है. यही स्थिति कमोबेश मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र राज्य की है. 


 


बात राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की करें तो दिल्ली में भी मस्जिदों से होने वाले आज़ान पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया गया है. दिल्ली में भी किसी भी मस्जिद से किसी भी समय अजान नहीं हो रहा है. 


 


 इसी प्रकार अन्य राज्यों से हमारे ब्यूरो ने जो जानकारियां संकलित की हैं उसके अनुसार कोलकाता के कुछ विशिष्ट इलाकों को छोड़ दें तो देश के किसी भी भाग में मस्जिदों में अजान नहीं होता है. 


 


 गौरतलब है कि दुनिया भर में करीब 200000 लोगों को लील चुकी कोरोना बीमारी को लेकर दुनिया के अन्य देशों से कहीं ज्यादा भारत सरकार और भारत की राज्य सरकारें गंभीर हैं क्योंकि भारत में भी अब तक कोरोना संक्रमण से मरने वाले लोगों का आंकड़ा 2000 के पार हो चुका है. 


 


यहां यह बात विशेष रुप से ध्यान देने की है कि कोरोना एक संक्रामक बीमारी है. यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के पास पहुंचती है और एक ही व्यक्ति से 100 लोगों से भी ज्यादा लोगों तक तेजी से पहुंच सकती है . इसी को ध्यान में रखते हुए मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च आदि में लोग इकट्ठे ना हों इसीलिए उन्हें प्रतिबंधित किया गया है. 


 


 लॉक डाउन किए जाने के बावजूद दिल्ली के मरकज में तबलगी जमात की घटना आज भी देश को सता रही है. तबलीगी जमात के अनेक लोग अभी भी सरकार से छुपकर कोरोना संक्रमण बांट रहे हैं.


 


 ऐसे लोगों की संख्या उत्तर प्रदेश में भी कम नहीं है सरकार ने इन्हें चिन्हित करने और पकड़ने के लिए इनाम तक घोषित किया किंतु नतीजा ठन ठन गोपाल रहा क्योंकि जमात को लेकर यह समाज काफ़ी पूर्वाग्रहों से ग्रसित रहा है और उन्हें बचाने का प्रयास भी करता रहा है. वास्तव में यह सब धार्मिक कट्टरता का परिणाम है. 


 


 यह जानते हुए कि मस्जिदों से अजान पर रोक है और यह रोक उत्तर प्रदेश सरकार ने नहीं बल्कि भारत सरकार ने लगाई है, जिसका अनुपालन उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को कराना है बावजूद इसके उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में स्थित मस्जिदों से अजान का जारी रखा जाना धार्मिक कट्टरता को ही दर्शाता है और कोरोना के खौफ को हवा में उड़ा देता है.


 


 अब सवाल इस बात का उठता है कि धार्मिक तुष्टीकरण ना करने की बात करने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार ने क्या मस्जिदों से अजान के लिए विशेष छूट दी है ? यदि हां तो किन शर्तों के साथ? और यदि नहीं तो सरकार के अधिकारियों कर्मचारियों को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जैसे जिले के ग्रामीण इलाकों की मस्जिदों से होने वाले अजान की गूंज क्यों नहीं सुनाई देती है? क्या मेडिकल इमरजेंसी यहां नहीं लागू होती है? क्या इससे कोरोना संक्रमण फैलने का कोई खतरा नहीं है जबकि यह निश्चित नहीं है की अजान के बाद मस्जिदों में कितने लोग नमाज के लिए पहुंचते हैं. 


 


 भगीरथ प्रयास न्यूज़ नेटवर्क के लिए सुल्तानपुर ब्यूरो के साथ नई दिल्ली से राकेश अवस्थी, मुंबई से विनोद प्रताप सिंह और पुणे से पुष्कर महाजन की रिपोर्ट. 


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