साथ ही, जो चालक सेवा में लगे हुए थे, उन्हें यूनियन के कार्यकर्ताओं द्वारा डराकर जबरदस्ती हड़ताल में शामिल होने को मजबूर किया गया। पिछले दो दिनों से ओला, उबर और रैपिडो जैसी निजी कैब कंपनियों के खिलाफ कुछ व्यावसायिक यूनियनों द्वारा विरोध आंदोलन छेड़ा गया है।
इन कंपनियों के विरोध में राज्य भर से आए रिक्शा और कैब चालक मुंबई के आज़ाद मैदान में आंदोलन में शामिल हो रहे हैं। पुणे में मोबाइल ऐप आधारित रिक्शा और कैब सेवाओं की हड़ताल पहले दो दिनों में असरहीन रही, लेकिन शुक्रवार को इसका व्यापक प्रभाव महसूस किया गया। कई चालक स्वेच्छा से हड़ताल में शामिल हुए, जबकि कई को जबरदस्ती बंद का हिस्सा बनाया गया।
संघटनाओं द्वारा विशेष रूप से एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन के कैब चालकों पर दबाव डाला गया कि वे गाड़ियाँ बंद रखें। इसके चलते यात्रियों को भारी मानसिक तनाव का सामना करना पड़ा।
प्रशासन की अनदेखी:
शुक्रवार को हड़ताल तेज होने के बावजूद प्रशासनिक तंत्र की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। कई यात्रियों को बीच रास्ते में ही उतार दिया गया, लेकिन न तो पुलिस ने कोई कार्रवाई की, न ही क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (RTO) ने कोई ठोस पहल की। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि प्रशासन को इस हड़ताल की कोई जानकारी ही नहीं है।
यात्रियों की ओर से यह सवाल उठाया जा रहा है कि आम जनता को हो रही तकलीफों के बावजूद प्रशासन और पुलिस की निष्क्रियता क्यों बनी हुई है। हड़ताल के कारण उत्पन्न अव्यवस्था से साफ है कि इस पर तुरंत ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।