गृह मंत्री शाह के बयान पर कांग्रेस की तीखी प्रतिक्रिया 72% नक्सलवाद खत्म, तो फिर "जन सुरक्षा कानून" की क्या जरूरत?
प्रदेश प्रवक्ता गोपालदादा तिवारी ने कहा – ये 'जन सुरक्षा' नहीं, 'सत्ता सुरक्षा' कानून है!

पुणे। देश के गृह मंत्री अमित शाह द्वारा बार-बार यह दावा किया जा रहा है कि नक्सलवाद लगभग समाप्ति की कगार पर है। हाल ही में एक खबरिया चैनल को दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि नक्सली घटनाओं में 72% की गिरावट आई है और 2026 तक भारत पूरी तरह नक्सलमुक्त हो जाएगा।

इस पर कांग्रेस की तरफ से तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा गया है कि सवाल यह उठता है कि जब पहले से UAPA और मकोका जैसे सख्त कानून मौजूद हैं, तब भी "जन सुरक्षा कानून" लाने की आवश्यकता क्यों पड़ी? क्या यह वाकई जनता की सुरक्षा के लिए है, या फिर सरकार की सत्ता की सुरक्षा के लिए?

कांग्रेस प्रवक्ता गोपालदादा तिवारी ने इस पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि, "जब सरकार विपक्षी सवालों का सामना नहीं कर पाती, तब वह इस तरह के कानूनों के जरिए स्वायत्त संस्थाओं, मीडिया और विपक्ष की आवाज को कुचलने का प्रयास करती है।"
उन्होंने आरोप लगाया कि यह कानून बहुमत के बल पर, सर्वसम्मति के बिना पारित किया गया, जिससे साफ होता है कि यह वास्तव में ‘जन सुरक्षा’ नहीं बल्कि ‘सत्ता सुरक्षा’ कानून है।

गोपालदादा तिवारी ने याद दिलाया कि भाजपा के वरिष्ठ नेता और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को लेकर यह तक कह दिया था कि उसमें 40 नक्सली संगठन शामिल थे। लेकिन आज तक, सरकार एक भी सबूत या एफआईआर सामने नहीं रख सकी। इससे यह साबित होता है कि सरकार को जो विरोध करता है, उसे नक्सली ठहराना एक 'राजनीतिक फेशन' बन चुका है।

तिवारी ने कहा,‌ "विरोधी दल कोई गैरजिम्मेदार संगठन नहीं हैं। उन्होंने भी सत्ता चलाई है और वे जानते हैं कि किन कानूनों की समाज को वास्तव में आवश्यकता है। लेकिन मौजूदा सत्ता पक्ष की अपनी कोई कार्यक्षमता नहीं है। इसलिए वे विपक्ष के सवालों से भागने के लिए ऐसे कानूनों का सहारा ले रहे हैं।"
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि – "क्या यह कानून विपक्षी नेताओं को बिना सबूत, बिना सुनवाई, लंबे समय तक हिरासत में रखने के लिए लाया गया है? क्या अब सवाल पूछना, नीतियों पर असहमति जताना, या सरकार से जवाब मांगना भी ‘अपराध’ मान लिया जाएगा?"


कुल मिलाकर, कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र की मूल भावना पर हमला बताते हुए कहा है कि यह कानून जनहित में नहीं, सत्ता के हित में बनाया गया है, ताकि असहमति की हर आवाज को दबाया जा सके, डराया जा सके और जेल में बंद किया जा सके।


यह रिपोर्ट एक ऐसे समय आई है जब देशभर में "जन सुरक्षा कानून" को लेकर बहस छिड़ी हुई है। अब देखना यह है कि क्या यह कानून भविष्य में जनता की सुरक्षा का औज़ार बनेगा या फिर विपक्ष के दमन का हथियार?
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