आ गया है बारिश का मौसम… डेंगू से स्वयं को बचाइए
दुनिया भर में करोड़ों नागरिक डेंगू रोग से संक्रमित होते हैं। भारत में भी ग्रामीण, शहरी और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में इस रोग की संख्या अधिक है। डेंगू के कारण मृत्यु भी हो सकती है। यह रोग विशेष रूप से बारिश के मौसम में अधिक फैलता है। हर वर्ष डेंगू के मामलों में वृद्धि हो रही है, इसलिए वर्षा ऋतु में नागरिकों को विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता है।

डेंगू का प्रसार:
डेंगू रोग एडीज इजिप्टी नामक मादा मच्छर के काटने से फैलता है। यह एक वायरल बीमारी है। डेंगू वायरस के चार प्रकार होते हैं – डेंगू-1, डेंगू-2, डेंगू-3 और डेंगू-4। डेंगू संक्रमित मच्छर मरने तक वायरस फैलाता रहता है। मच्छर के शरीर में वायरस की वृद्धि लगभग 8 से 10 दिनों में पूरी होती है। एडीज इजिप्टी मच्छर साफ जमा पानी में जैसे मटके, घड़े, कूलर, पानी की टंकी, छत पर रखी फालतू चीजें, नारियल के खोल, टायर आदि में पनपते हैं। इन मच्छरों की टांगों पर काले-सफेद धारियां होती हैं, इसलिए इन्हें टाइगर मच्छर भी कहा जाता है। अंडा, लार्वा, प्यूपा, मच्छर – यह इनकी चार अवस्थाएं होती हैं, और इनका जीवन चक्र 3 से 10 दिन का होता है।

डेंगू के लक्षण:
तेज बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द, उल्टी, आंखों में तेज दर्द, कमजोरी, भूख कम लगना, बुखार का घट-बढ़ होना, शरीर पर चकत्ते आना आदि लक्षण दिखाई देते हैं।
डेंगू हेमोरेजिक फीवर (रक्तस्रावी डेंगू बुखार) में त्वचा के नीचे रक्तस्राव, नाक से खून आना, खून की उल्टी, रक्त मिश्रित या काले रंग का मल, पेट दर्द आदि लक्षण होते हैं। यह विशेष रूप से 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और बुजुर्गों में गंभीर होता है।

डेंगू शॉक सिंड्रोम:
डेंगू के गंभीर रूप में जब रोगी बेहोश हो जाता है, तो इसे डेंगू शॉक सिंड्रोम कहते हैं, इसमें मृत्यु की संभावना अधिक होती है।

रोग की पहचान:
सरकारी मेडिकल कॉलेज, सेंटिनल सेंटर, जिला सामान्य अस्पताल की माइक्रोबायोलॉजी विभाग में रक्त या सीरम की जांच से डेंगू की पुष्टि होती है।

उपचार:
इस रोग का कोई निश्चित इलाज नहीं है। डॉक्टर की सलाह अनुसार दवाइयां और आराम आवश्यक है। ज्यादा पसीना आना, बार-बार उल्टी होना, जीभ का सूखना जैसे लक्षणों में ओआरएस (नमक-चीनी का घोल) का सेवन करना चाहिए।

सावधानियां:
टैबलेट एस्पिरिन या ब्रूफेन जैसी दवाएं न लें। डॉक्टर की निगरानी में ही इलाज करें। डेंगू हेमोरेजिक फीवर और डेंगू शॉक सिंड्रोम के मरीजों को तुरंत अस्पताल में भर्ती करना चाहिए।

पुणे जिला परिषद के अंतर्गत आरोग्य विभाग द्वारा किए जाने वाले उपाय:
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सर्वेक्षण से रक्त और सीरम के नमूने लेकर नेशनल वायरोलॉजी इंस्टीट्यूट में जांच की जाती है। संक्रमित मरीजों का इलाज किया जाता है और आसपास के क्षेत्र में रोकथाम की जाती है। मच्छर की अंडियों और लार्वा की निगरानी की जाती है।

घर के ऐसे पानी के स्त्रोत जिनसे पानी निकालना संभव नहीं, वहां एबेटिंग किया जाता है। जैविक उपायों में गप्पी मछलियां छोड़ी जाती हैं, जो मच्छरों के लार्वा खाती हैं। ये मछलियां सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर मुफ्त मिलती हैं। प्रभावित क्षेत्रों में सप्ताह में 0-3-7 दिन के अंतर से फॉगिंग (धुंआ फव्वारा) की जाती है।

नागरिकों के लिए सावधानी:
डेंगू का मच्छर सामान्य मच्छर से अलग होता है और दिन में काटता है। घर और आस-पास मच्छरों को पनपने न दें। कूलर का पानी नियमित रूप से बदलें। गमले, बोतलें या अन्य स्थानों पर पानी जमा न होने दें। सप्ताह में एक दिन सूखा दिवस मनाएं। वेंट पाइप पर जाली लगवाएं। फूलदान और गमलों का पानी बार-बार बदलें। नालों की सफाई करें। घर में रखे ड्रम, बर्तन आदि को ढककर रखें। पशु-पक्षियों को पानी देने वाले बर्तन साफ रखें और सप्ताह में एक बार धोएं। छत पर पानी जमा न होने दें। फ्रिज के पीछे का पानी सप्ताह में एक बार जरूर निकालें।

इस प्रकार की सावधानी अपनाकर मच्छरों की उत्पत्ति को रोका जा सकता है।

बबिता कमलापुरकर, सह-निदेशक, स्वास्थ्य सेवा:
इस बीमारी को लेकर आम नागरिकों में जागरूकता बढ़ाने की दृष्टि से सभी को स्वास्थ्य विभाग की सलाह का पालन करना चाहिए। डेंगू से बचाव के लिए रोकथाम जरूरी है। संक्रमित व्यक्ति तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र जाकर जांच करवाएं और इलाज शुरू करें। कीटजनित रोगों पर नियंत्रण के लिए सभी का सहयोग अपेक्षित है।

संकलन: जिला सूचना कार्यालय, पुणे


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