रंग पंचमी को श्री पंचमी और देव पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में इस त्योहार का विशेष महत्व है क्योंकि यह देवी-देवताओं को समर्पित एक पवित्र पर्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने रंग पंचमी की शुरुआत की थी।
पौराणिक कथा
चैत्र माह की प्रतिपदा को रंगों का प्रमुख पर्व होली मनाया जाता है। इसके ठीक पांच दिन बाद रंग पंचमी का उत्सव मनाने की परंपरा है। मान्यता है कि होलाष्टक के दौरान भगवान शिव ने जब कामदेव को भस्म कर दिया, तो देवलोक में उदासी छा गई। देवी रति और अन्य देवताओं के आग्रह पर भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित किया, जिसके बाद सभी देवी-देवताओं ने रंगों के साथ उत्सव मनाया। यही परंपरा आज भी रंग पंचमी के रूप में मनाई जाती है।
रंग पंचमी और भगवान श्रीकृष्ण
एक अन्य मान्यता के अनुसार, द्वापर युग में इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी ने होली खेली थी। जब दोनों प्रेमपूर्वक रंगों में सराबोर हुए, तो स्वर्ग से देवी-देवताओं ने पुष्पवर्षा की। इसी कारण इस दिन अबीर-गुलाल उड़ाने की परंपरा प्रचलित हुई। ऐसा माना जाता है कि इस दिन रंग खेलने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे घर में सुख-समृद्धि आती है।
आध्यात्मिक दृष्टि से रंग पंचमी
रंग पंचमी केवल एक रंगों का पर्व नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना को जागृत करने वाला उत्सव भी है। यह पांच तत्वों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश – का प्रतीक है। हमारी पांच कर्मेंद्रियां और पांच ज्ञानेंद्रियां मिलकर हमारे जीवन में संस्कार, संस्कृति, सद्विचार, सतर्कता और सत्कर्म को पुष्पित-पल्लवित करती हैं।
रंग पंचमी पर क्या करें और क्या न करें?
✔️ सात्विक आहार ग्रहण करें।
✔️ मां सरस्वती की कृपा पाने के लिए मांस, मछली, लहसुन, प्याज और नशीली वस्तुओं से परहेज करें।
✔️ सद्भाव और प्रेम के रंगों में रंगें, जिससे जीवन में खुशहाली बनी रहे।
शुभकामनाएं
इस पावन अवसर पर सभी वैष्णवों को अनेक शुभकामनाएं।
भगवान हमें भक्ति और शक्ति प्रदान करें—इसी प्रार्थना के साथ आप सभी को रंग पंचमी की हार्दिक बधाइयां!
✍️ नरेंद्र गिरधरलाल वाणी
📞 मो.: 73870 8 1951