उन्होंने सवाल उठाया, “देश की स्वतंत्रता और उसकी स्व-प्रतिष्ठा अलग कैसे हो सकती है? 15 अगस्त 1947 को मिली स्वतंत्रता में ही भारत की स्व-प्रतिष्ठा स्थापित हो गई थी। इसे संघ क्यों नहीं मानता?”
गोपालदादा ने कहा कि संघ, जनसंघ और भाजपा समर्थकों में स्वतंत्रता संग्राम में योगदान न होने का हीनभावना साफ झलकती है। उन्होंने आरोप लगाया कि भागवत का यह बयान स्वतंत्रता संग्राम के प्रति संघ की कृतघ्नता को उजागर करता है।
तिवारी ने आगे कहा, “संविधान और न्यायपालिका ने राम मंदिर जैसे विवादित मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान 70 वर्षों में निकाला। संघ को यह स्वीकार करना चाहिए कि स्वतंत्र भारत में मिली संवैधानिक व्यवस्था के कारण ही यह संभव हो सका है।”
उन्होंने यह भी कहा कि भागवत ने पूर्व में कांग्रेस के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान की प्रशंसा की है, लेकिन अब स्वतंत्रता संग्राम को लेकर बार-बार अपमानजनक बयान देना उनके दबाव में होने का संकेत है।