स्वतंत्रता संग्राम में योगदान नहीं, तो उसकी परिभाषा तय करने का अधिकार भी नहीं: गोपालदादा तिवारी
पुणे। कांग्रेस के राज्य प्रवक्ता गोपालदादा तिवारी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत के हालिया बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि जिनका भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कोई त्याग, संघर्ष या योगदान नहीं है, उन्हें स्वतंत्रता की ‘स्वत्व’ और ‘प्रतिष्ठा’ की परिभाषा तय करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। तिवारी ने भागवत के बयानों को “संकुचित, हास्यास्पद और दुर्भाग्यपूर्ण” करार दिया।

उन्होंने सवाल उठाया, “देश की स्वतंत्रता और उसकी स्व-प्रतिष्ठा अलग कैसे हो सकती है? 15 अगस्त 1947 को मिली स्वतंत्रता में ही भारत की स्व-प्रतिष्ठा स्थापित हो गई थी। इसे संघ क्यों नहीं मानता?”

गोपालदादा ने कहा कि संघ, जनसंघ और भाजपा समर्थकों में स्वतंत्रता संग्राम में योगदान न होने का हीनभावना साफ झलकती है। उन्होंने आरोप लगाया कि भागवत का यह बयान स्वतंत्रता संग्राम के प्रति संघ की कृतघ्नता को उजागर करता है।

तिवारी ने आगे कहा, “संविधान और न्यायपालिका ने राम मंदिर जैसे विवादित मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान 70 वर्षों में निकाला। संघ को यह स्वीकार करना चाहिए कि स्वतंत्र भारत में मिली संवैधानिक व्यवस्था के कारण ही यह संभव हो सका है।”

उन्होंने यह भी कहा कि भागवत ने पूर्व में कांग्रेस के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान की प्रशंसा की है, लेकिन अब स्वतंत्रता संग्राम को लेकर बार-बार अपमानजनक बयान देना उनके दबाव में होने का संकेत है।
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