जगदीशपुर अमेठी।विकास क्षेत्र अंतर्गत ग्राम सभा अंकरा में चल रहे सप्ताह व्यापी श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन बुधवार को कथावाचक आचार्य देवानंद मिश्रा जी महाराज ने व्यास पीठ से अजामिल उद्धार, भक्त प्रहलाद चरित्र एवं नरसिंह अवतार का प्रसंग का सुंदर व्याख्यान किया।उन्होंने कहा कि अभिमान शून्य हदय ही प्रभु को वंदन कर सकता हैं।अभिमान त्यागने की चीज हैं, किन्तु भक्ति दर्शन कहता हैं कि यदि अभिमान को नहीं छोड़ सकते तो वह अभिमान प्रभु के चरणों से जोड़ दें।मैं भगवान का हूं और भगवान मेरे हैं ऐसा अभिमान तो ऋषियों ने भी मांगा हैं।भक्त प्रहलाद चरित्र का प्रसंग सुनाते हुए कथावाचक ने आगे कहा कि सच्चा साधक कभी भी परिस्थितियों को दोष नहीं देता। आज तक किसी के जीवन में एक जैसी परिस्थिति नहीं रही। सत्संग से परिस्थिति नहीं बदलती,अपितु मन स्थिति संभलती है।आचार्य जी ने कहा की संतों ने भी यही संदेश दिया हैं कि परिस्थिति मत टालों मनः स्थिति सम्हालो। भागवत की कथा वर्तमान में प्रासंगिक है।उसके चिंतन से ही साधक मानसिक धरातल को मजबूत कर सकता है।अनेक साधना के मार्ग शास्त्र ने बताया हैं किन्तु भगवान के नाम के मार्ग को श्रेष्ठ माना हैं।कलियुग हरिनाम ही प्रभु प्राप्ति का एक मात्र श्रेष्ठ साधन हैं।कपिल उपदेश का प्रसंग सुनाते हुए महराज ने कहा कि संत गुणवाचक शब्द हैं, भेषवाचक नहीं।जब से भेष से संतों की पहचान होने लगी हैं तब से संतत्व की महिमा कम हुई है। हमारे संस्कृति में जटायु, जामवंत संत हैं पर रावण कामनेमी नहीं। गुणों से संत होते है।महाराज जी चौथे दिन मंगलवार को वामन अवतार, श्रीराम जन्म, श्री कृष्ण प्राकटय एवं नंद महोत्सव का प्रसंग सुनायेंगे।कथा के दौरान उपस्थित श्रद्धालु देर संघ्या तक जमे रहे। उक्त अवसर पर कालूराम तिवारी,श्यामसुंदर तिवारी,मुकेश मिश्र,राजेश मिश्रा,श्यामू तिवारी,ओंकारनाथ तिवारी सहित काफी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।
कलियुग हरिनाम ही प्रभु प्राप्ति का एक मात्र श्रेष्ठ साधन हैं:- आचार्य देवानंद जी महाराज