मानवता एवं मूल्यो को बढ़ावा देनेवाली शिक्षा जरूरी
प्रा. डॉ. माधवी खरात का प्रतिपादन; आठवे विद्यार्थी-शिक्षक साहित्य संमेलन का उद्घाटन
पुणे , भगीरथ प्रयास न्यूज़ नेटवर्क : "शिक्षक अच्छे समाज को निर्माण करते है. छात्रों के मन में सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी, बंधुत्व की भावना निर्माण करने का काम शिक्षक करते है. आधुनिक शिक्षा के साथ मानवता, नैतिक मूल्यो की शिक्षा जरुरी है. मानवता के लिए जागरूकता निर्माण करनेवाले ऐसे संमेलन ऊर्जा के केंद्र है," ऐसा प्रतिपादन आठवे विद्यार्थी-शिक्षक साहित्य संमेलन की अध्यक्षा प्रा. डॉ. माधवी खरात ने किया.
राष्ट्रीय बंधुता साहित्य परिषद और रयत शिक्षण संस्थान संचालित औंधस्थित डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर महाविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित आठवे विद्यार्थी-शिक्षक साहित्य संमेलन का उद्घाटन ज्येष्ठ शिक्षणतज्ज्ञ हरिश्चंद्र गडसिंग के हाथो हुआ. स्वागताध्यक्ष पूर्व विधायक ॲड. राम कांडगे, बंधुता साहित्य परिषद के संस्थापक अध्यक्ष बंधुताचार्य प्रकाश रोकडे, संमेलन के निमंत्रक प्राचार्य डॉ. अरुण आंधळे, रयत शिक्षण संस्थान के किसन रत्नपारखी, महाविद्यालय के मराठी विभाग प्रमुख डॉ. संजय नगरकर, बंधुता साहित्य परिषद के सरचिटणीस शंकर आथरे आदी उपस्थित थे. इस समय सूर्यकांत सरवदे, रविंद्र जाधव और चंद्रकांत सोनवणे को साने गुरुजी गुणवंत विद्यार्थी पुरस्कार से नवाजा गया. दोपहर के सत्र में प्रसिद्ध कवी चंद्रकांत वानखेडे ने 'जाऊ कवितेच्या गावा' यह प्रबोधनात्मक कार्यक्रम सादर किया.
प्रा. डॉ. माधवी खरात कहा, "साहित्य व्यक्ती को प्रेरणा देता है. संस्कृती का प्रसार, स्वातंत्र्य, समता बंधुता न्याय यह विचार देनेवाले साहित्य मार्गदर्शक है. इसलिये वंचित, दुर्लभ घटक को आत्मसन्मान देनेवाले साहित्य निर्माण होना जरूरी है. साहित्य क्रांति की ज्योत जलाता है. शिक्षा से क्रांति होती है. इसलिये शिक्षकोंने छात्र की अस्थिर मानसिकता जानकर पाठ्यपुस्तक से बाहर आकर शिक्षा देना जरूरी है. बुद्धी, विचार को अच्छी दिशा देने का कार्य शिक्षक का होता. स्त्री शक्ती का गौरव, सन्मान करने की मानसिकता अपनानी चाहिए। साडेचार दशक से प्रकाश रोकडे संमेलन समाज शिक्षा देने का कार्य कर रहे है."

हरिश्चंद्र गडसिंग कहा, "भारतीय शिक्षण पद्धती प्रभावी और जगमान्य थी. तक्षशिला, नालंदा यह शिक्षण केंद्रे थे बंधुभाव, देशप्रेम जाननेवाला संवेदनशील भारतीय समाज को छल करने सुरुवात की संत साहित्य का वारसा न होनेवाले लोगोने सत्ता निर्माण करने का प्रयास किया. आंग्रेज के काल में शिक्षण पद्धती का अंत हुआ मेकॉलेने भारतीय शिक्षण पद्धती का नाश किया. दुर्भाग्य की बात उस काल में स्वीकार हुआ पेट के लिए नौकरी करनी पड रही थी इस वजह से मानसिकता खराब हुवी मूल्य का अंतर्भाव करना चाहिए. वैश्विक स्तर पर शिक्षण लेने से ही हमारी प्रगति होने वाली है.

ॲड. राम कांडगे स्वागत भाषण में कहा, "महाराष्ट्र को मानवता, बंधुता का संदेश देनेवाले संत की बढी परंपरा है संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम इनका विचार विद्यार्थ्यी की पास पोहचना चाहीऐ शिवाजी महाराज, शाहू महाराज, महात्मा फुले, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, कर्मवीर भाऊराव पाटील इनका कार्य हम समज लेना चाहीऐ" बंधुताचार्य प्रकाश रोकडे इन्होने आपना मनोगत व्यक्त किया, शंकर आथरे ने सूत्रसंचालन किया प्राचार्य डॉ. अरुण आंधळे ने प्रास्ताविक किया प्रा. डॉ. संजय नगरकर आभार व्यक्त किये.
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