निर्भया के दोषियों की फांसी नहीं चाहता देश का एक बड़ा वर्ग, माफी की उठी मांग


  नई दिल्ली /पुणे/ अहमदनगर/ गोरखपुर/ प्रतापगढ़ से भगीरथ प्रयास न्यूज़ नेटवर्क ब्यूरो रिपोर्ट :  निर्भया के दोषियों मैं से दो लोगों की दया याचिका राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने खारिज कर दिया है।  दोषियों की 22 जनवरी को होने वाली फांसी फिलहाल टल गई है और अब इसके लिए नई तारीख 1 फरवरी घोषित की गई है। इस दौरान देश भर से निर्भया के दोषियों को फांसी नहीं देने की आवाज उठने लगी है। 


सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठित वकील इंदिरा जयसिंह ने निर्भया की मां आशा देवी से अपील करते हुए एक ट्वीट के माध्यम से कहा है कि वह बड़ा दिल दिखाते हुए निर्भया के दोषियों को माफ कर दे और उनकी फांसी टलवा दें। 


हालांकि आशा देवी ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यदि इंदिरा जयसिंह अथवा उनकी बेटी के साथ ऐसा कुछ हुआ होता तो क्या वह ऐसा कर सकती थी। 


इस पर इंदिरा जयसिंह ने एक नया ट्यूट किया और कहा है कि मृत्यु दंड दे ना ही कोई विकल्प नहीं है जिस प्रकार सोनिया गांधी ने राजीव गांधी के हत्यारों को माफी दे दिया और वह आज आजीवन कारावास भोग रहे हैं उसी प्रकार निर्भया के दोषियों को भी आजीवन कारावास देना चाहिए। 


अंत में इंदिरा जयसिंह ने यह भी कहा है कि वह आशा देवी के साथ हैं किंतु मृत्युदंड के खिलाफ हैं।  यह तो हुई एक मशहूर वकील की बात  जिसका मीडिया ने संज्ञान लिया और यह एक बड़ी खबर बनी किंतु इंदिरा जयसिंह के अलावा भी देश का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो इस फांसी के खिलाफ है। 


 समाजसेवी और फांसी के खिलाफ  मुहिम चला रहे रूद्र मणि तिवारी ने इस संबंध में ट्वीट किया है और यूट्यूब पर फेसबुक पर तथा अन्य सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए दोषियों के लिए फांसी की सजा से माफी की मांग की है। 


 श्री तिवारी का कहना है कि बलात्कार के मामलों में खासकर ऐसे मामलों में जिसमें गैंग रेप और मर्डर हुआ हो उसमें मृत्युदंड ही सबसे बड़ी सजा नहीं हो सकती क्योंकि मृत्युदंड देने से अपराधी को कुछ ही क्षण में अपनी सजा भोग लेने का मौका मिल जाता है जबकि ऐसे दोषियों को आजीवन कारावास और सश्रम कारावास जैसी कठोरतम सजा देनी चाहिए ।  इससे वह आजीवन तिल तिल कर अपनी सजा  को  भुगतेंगे और मानसिक रूप से अपनी गलती पर पछताएंगे। 


 श्री तिवारी का कहना है कि बलात्कार जैसी घटनाओं को रोकने के लिए भारत में भारतीय सभ्यता का प्रचार प्रसार करना होगा । जरूरी लगे तो इसके लिए कानून भी बनाना पड़ेगा।  बलात्कार उपयोजना की वजह से ही होता है और उत्तेजना भड़काने के लिए सिर्फ दोषी ही जिम्मेदार नहीं होता इस पर समाज और सरकार को गहन अध्ययन करना चाहिए उसके बाद ऐसा सिस्टम विकसित करना चाहिए जिससे किसी लड़की या महिला को देखकर कोई व्यक्ति जबरदस्ती करने की न सोच सके। बलात्कार के लिए कुछ हद तक पहनावा और उद्योजक गतिविधियां भी जिम्मेदार होती हैं  जिसकी सावधानी हमारी बहन बेटियों को रखना होगा।


 बहर हाल भगीरथ प्रयास न्यूज़ नेटवर्क के विभिन्न संवाददाताओं ने इस संबंध में अलग-अलग शहरों में और गांव में निर्भया के दोषियों को फांसी दी जाए या नहीं इस पर आम लोगों की राय संकलित की।  आश्चर्यजनक रूप से 85% महिलाओं ने निर्भया के दोषियों को फांसी न देने की मांग की जबकि 55% वयस्क पुरुषों ने भी फांसी की खिलाफत की। 


उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में खेती किसानी करने वाले काका कृष्ण शरण कहते हैं कि भारत अहिंसा वादी देश है और यहां किसी के भी मरने की खबर सुनकर कोई खुश नहीं होता है। एक लड़की की मौत के लिए 4 नौजवानों को फांसी पर लटका देना उचित नहीं लग रहा है। इन दोषियों को कोई दूसरी सजा दे दी जाए किंतु मृत्युदंड न दिया जाए। 


 इसी संबंध में महाराष्ट्र के अहमदनगर में समाजसेवी   संजय कोठारी कहते हैं कि फांसी देना ठीक नहीं है।  दोषियों को आजीवन तनहाई दे देना चाहिए। 


 गोरखपुर  के रघु राम यादव कहते हैं कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को दोषियों को फांसी से माफी देखकर उनकी सजा को आजीवन कारावास में बदल देना चाहिए क्योंकि इतने दिनों में वह अपनी फांसी की खबर सुनकर लगभग हर दिन मौत का एहसास कर चुके हैं। 


राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में भी एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो दोषियों को फांसी दिए जाने की खिलाफत कर रहा है।  इन लोगों का कहना है कि भारत में अब तक गरीबों के ही गले तक फांसी का फंदा पहुंचा है किसी संपन्न व्यक्ति द्वारा चाहे जितना बड़ा जुर्म किया गया हो किंतु उसे फांसी की सजा नहीं हुई है।  इन चारों गरीब युवाओं को फांसी न देकर उम्र कैद देना चाहिए। 


उल्लेखनीय है कि जिस सोशल मीडिया ने निर्भया के गुनहगारों को फांसी के फंदे तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी अब उसी सोशल मीडिया ने दोषियों को फांसी न देते हुए आजीवन कारावास देने की मुहिम छेड़ दी है।  अब देखना यह है कि निर्भया के दोषियों को 1 फरवरी को फांसी पर लटकाया जाता है या कि उससे पहले उनकी फांसी टालने की मांग जोर पकड़ लेती है। 


 


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