प्रकृत से जुड़ाव ही सफलता का मूल मंत्र - श्वेत पृष्ठ


चंडीगढ़ विश्वविद्यालय से कंप्यूटर साइंस एवं अभियांत्रिकी में तृतीय वर्ष के छात्र अभिषेक शुक्ल(जन्म स्थान– बस्ती, वर्तमान पता– मऊ पूरे भोला तिवारी सुल्तानपुर) जहां एक और समाज के गरीब तबकों के लिए सस्ती व सुलभ तकनीकी के विकास में लगे हैं वहीं दूसरी ओर समाज के प्रति गहरी संवेदना भी रखते हैं । अभी हाल में नव जागरण प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित अभिषेक की पहली किताब "श्वेत पृष्ठ" समाज के अंतर्द्वंदों, विरोधाभासों और आडंबरों पर जहां एक ओर गहरी चोट करती है वहीं दूसरी तरफ प्रकृति से जुड़ाव को सफलता का मूल मंत्र बताते व  नई दुनिया की सैर कराते हुए समाज में सकारात्मक उर्जा का संचार भी करती है । 


काव्य के प्रति प्रेम व काव्य संग्रह को श्वेत पृष्ठ नाम दिए जाने के सन्दर्भ में अभिषेक कहते हैं कि कविताएं वह सर्व सुलभ माध्यम है जो समाज की जटिलताओं को बड़ी सरलता से सबके सामने रख देती हैं  जिस प्रकार सफ़ेद रंग अपने आप में अनगिनत रंगों को सहेजें है । व्यक्ति अपनी  अपनी जरूरतों के हिसाब से अपना रंग चुन लेता है, श्वेत पृष्ठ  में भी ऐसे अनगिनत रंगों का समावेश है जो स्वयं श्वेत होकर भी लोगों के जीवन में उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप रंग भरने का कार्य करती है । सहज शब्दों में  कहें तो जन्म के समय बच्चे का मन सभी तरह के विकारों से परे एक कोरे कागज की भांति होता है । धीरे-धीरे समय समाज और सामाजिक कुरीतियों के प्रभाव  से मन मैला हो जाता है । श्वेत पृष्ठ उसी मैले मन को फिर से निर्विकार करके मानवीय गुणों से ओतप्रोत मानव को महामानव बनाने में अहम भूमिका निभा रही है । 


श्वेत पृष्ठ काव्य संग्रह में अभिषेक ने मनुष्य की तर्कहीनताओं और त्रासदियों को बहुत निकट जाकर देखा है । विडंबनाओं से, विरोधाभासों से, एक दूसरे को काटती हुई स्थितियों से, परस्पर टकराते हुए सचों से कवि को जीवन की अनंता से टकराने का आधार मिलता है । काव्य संग्रह की भाषा अत्यंत सतर्क ढंग से साधारण से दिखते बुनियादी सवालों को अत्यंत मूल्यवान सच की तरह प्रस्तुत करती है । समाज के बदलते परिवेश में जहां स्वार्थ ही सर्वोपरि है से बहुत दूर यह किताब नई दुनिया की सैर कराती है । जहां मानवता प्रकृति प्रेम राग भावना जीवन का आधार है यह किताब ऐसी किसी दुनिया में ले जाने का एकमात्र मार्ग है । मातृभाषा और मातृभूमि से अपने प्रेम को दर्शाती यह पुस्तक जीवन को उसके यथार्थ से परिचित कराती है । 


इस संग्रह में जहां एक ओर समाज को आईना दिखाते हुए 'मेरा घर अब गांव हो' , 'गया मचान और वो' ,  'होली तो बीत गई' , 'जिसके पीपल के छांव तले' जैसी कविताएं वहीं दूसरी ओर प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों और उसके प्रति प्रेम को दर्शाते हुए 'शाम: एक भाव' , 'यह सावन की हरियाली थी' ,  'इस धरती का श्रृंगार करें' आदि कविताएं पाठकों पर अमिट छाप छोड़ती है । अनेक प्रेरणादायी कविताओं जैसे 'गौरव गान' , 'अंतरध्वनि' , 'तुम मुझको रोक नहीं सकते' , 'मैं जुगनू का अनुयाई हूं' का भी समावेश इस संग्रह में मिलता है ।


रचनाकार की अन्य दो कृतियाँ 'दरख्त की छांव में (गजल संग्रह)' और 'सस्ती धूप (गजल संग्रह)' शीघ्र पाठकों के मध्य होगी ।


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